Tumhari Yaadein
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धूप से कैसे बचायेंगे ये दरख्तों के साए मुझको,
मुफिलिसी के दौर में सब नज़र आते हैं पराये मुझको,
जब गुज़रे वक़्त के पन्नो को पलटा हमने,
क्या कहूँ …तुम कितना याद आये मुझको,
इसी हसरत में दुनिया से हो गया रुखसत,
कोई तो अपना कह के पास बुलाये मुझको,
जिस तरह खो के मैंने ज़िन्दगी को पाया है,
मेरी हसरत है कोई खो के पाए मुझको,
तमाम उम्र मैं अश्कों के समंदर में रहा ,
अब कोई छोटी सी ख़ुशी आ के हसाए मुझको,
या हर शख्स मुझे ख़्वाबों में पनाह दे,
या हर कोई नज़रों से गिराए मुझको,
हम अपने दिल की सल्तनत के शहंशाह ठहरे ,
किसी में हुंनर है तो आ के हराए मुझको,
अमित “अश्क”
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